Newindinaews/UP क्या आप को पता है आज ही के दिन 20 रमज़ान 8 हिजरी ( 11 जनवरी सन् 630 ई. ) को इस्लाम के सबसे मुकद्दस शहरो में से एक मक्का को एक तवील मुस्लिम कुरैश दुश्मनी के बाद प्यारे आका صلی اللہ علیہ وسلم की कयादत में फतेह कर लिया था, ये एक ऐसी अज़ीम फतेह थी जो मुकम्मल तौर पर बगैर खून बहाए हासिल हुई थी।
तमाम काफिर ज़ालिम बत्तरीन लोगो की माफी के साथ साथ यहाँ तक की इस्लाम के सख्त-तरीन दुशमन अबू-सुफियान तक को माफ़ कर दिया गया था।
हज़रत अबू बकर सिद्दीक और हज़रत बिलाल के इस्लाम लाने के बाद और प्यारे आका صلی اللہ علیہ وسلم पर जिन जिन ज़ालीमो ने आप पर ज़ुल्म किया उन तक को माफ कर दिया गया।
अल्लाह अल्लाह
जब कुरैश ने वादा खिलाफी कर के खज़ाना कबीले के 20 , 22 आदमियों को मार कर उन पर हमला कर के हुदैबियाह की संधि की ख़िलाफ़वर्ज़ी की तो पैगम्बर मुहम्मद ﷺ ने कार्रवाई करने का फैसला किया।
लिहाजा 10 रमजान 8 हिजरी (1 जनवरी 630 ई.) को असर की नमाज़ पड़ कर पैगम्बर मुहम्मद ﷺ ने 10,000 के फौजी लश्कर के साथ मक्का की ओर पेशकदमी की, आपने फौज को कई हिस्सों में बांट दिया था, हर टुकड़ी का अपना अपना झंडा था, आप صلی اللہ علیہ وسلم के झंडे का रंग काला था। उसको ‘उक़ाब कहते थे। हज़रत अम्मा ‘आइशा‘ सिद्दीक की चादर फाड़ कर बनाया गया।
दुश्मन इस लश्कर को देख कर दंग रह गए जैसे की उन्होंने कोई समुंदर का सैलाब देख लिया हो, यह मदीना शरीफ की अब तक की सबसे बड़ी ताकत थी। पैगम्बर मुहम्मद ﷺ अपने पैदाइशी शहर में बगैर किसी मुखालफत के दाखिल हुए।
मक्के में दाखिले के बाद आपने उस्मान बिन तलहा को बुलाया, उनके पास काबे की कुंजी रहती थी। उन से कुजी ली अंदर दाखिल हुए, दरवाज़ पर खड़े होकर यह तक़रीर की। ‘अल्लाह एक है, उस का कोई माबूद नहीं, उस ने अपना वायदा सच कर दिखाया और अपने बंदों की मदद की।
ऐ कुरैश ! तुम्हारी जाहालियत के घमंड और कबीले की बडाई के गुमान को अल्लाह ने मिटा दिया। तमाम इंसान ‘आदम‘ की औलाद हैं और मिट्टी से बने हैं।
वो लोग जिन्होंने इस्लाम और खुद सरवरे आलम صلی اللہ علیہ وسلم की दुश्मनी में कोई कसर नहीं छोड़ी थी डरे हए सामने खड़े थे।
आपने उन की ओर देखा और फ़रमाया-‘तुम्हारा क्या ख्याल है, मैं तुम्हारे साथ कैसा बर्ताव करूंगा।‘ उन्होंने जवाब दिया।
आप करीम बाप के करीम बेटे हैं तो आप से हमे खैर की तवक्को है।‘ हुक्म हुआ, तो ‘जाओ, तुम सब आज़ाद हो। तुम से किसी किस्म का बदला नहीं लिया जाएगा। आप ने हुकुम दिया तो हज़रत बिलाल ने काबा की छत पर खड़े होकर अज़ान दी अल्लाह हु अकबर की सदाये चारो तरफ बुलंद होने लगीं, जिन गलियों में हज़रत बिलाल को मारा जाता था आज वहीं सारे नीचे खड़े हैं और हज़रत बिलाल काबा की छत पर खड़े होकर अज़ान दे रहे थे।
प्यारे आका काबा का तवाफ कर रहे थे हुज़ूर जिधर जिधर घूमते जा रहे हज़रत बिलाल उधर घूमते घूमते अज़ान देते जा रहे।
इस पर बरेली के ताजदार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां बरेलवी ने क्या खूब कहा है •••• हाजियों आओ शहंशाह का रौज़ा देखो काबा तो देख चुके अब काबा का काबा देखो।
कुफ्र पर इस्लाम गालिब आ चुका था, इस के बाद आपने काबे की कुजी ‘उस्मान बिन तलहा‘ को लौटा दी, जो आज तक उन्हीं के खानदान में चली आती है।
मक्के की जीत से एक नया दौर शुरू हुआ, आप صلی اللہ علیہ وسلم काबा के अंदर तशरीफ ले गए जिसमे 360 बुत थे आप अपनी छढ़ी से जिस बुत की तरफ इशारा करते वो बुत औंधे मुंह नीचे गिर पड़ता।
यूरोपीय इतिहासकारों ने भी एतेराफ किया है की फ़तेह की तमाम तारीखों में इस जैसा कोई फतेहना दाखिला नहीं हुआ है। कोई फतह खून बहाये बगैर हासिल नहीं हुयी। और दुनिया की तारीख में हारने वालों के लिए इस तरह से कोई माफ़ी नहीं दिखाई गयी थी।
ये है सच्चा मज़हब इस्लाम और उसकी रहम दिली।
वो मंज़र क्या मंज़र होगा वो लश्कर क्या लश्कर होगा जो ऐसी फतेह में शामिल हुआ हो वो एक वक्त था जब मक्का के लोगो के ज़ुल्म से परेशान आकार आप صلی اللہ علیہ وسلم ने मदीने शरीफ में हिजरत की थी और एक आज ये दिन है जब आप फतेह मक्का हो कर मक्के के अंदर दाखिल हुए, वो खुशी क्या खुशी होगी जो इस दिन तमाम लोगो को नसीब हुई, जो आज तक इस उम्मत के चेहरे पर है।
फतेह इस्लाम का मुकद्दर है, आज हम अपने ईमानो को मज़बूत कर लें तो तमाम फतेह आज भी हमारे मुकद्दर में लिख दी जाएं, बेशक अल्लाह ईमान वालो के साथ है जिस अल्लाह ने जंग ए बद्र में मुसलमानों को फतेह दिलाई उसी अल्लाह ने आज मक्का भी फतेह करा दिया था।
ए लोगो तुम हैप्पी न्यू ईयर की और तमाम दीगर चीज़ की मुबारक बाद देते हो आओ अगर मुबारक बाद देना है तो इस मुबारक दिन और इस अज़ीम फतेह मक्का की दो..!!
तमाम भाईयो को 20 रमज़ान फतेह मक्का बहुत बहुत मुबारक हो।
✊ 🇮🇳 ⚖️
(🍁 अल्तमश रज़ा खान 🍁)
( उत्तर प्रदेश, बरेली मोहल्ला शाहबाद )