Newindianews/Delhi: मंगलवार को रुपया बाजार खुलने के बाद पहली बार अब तक के अपने निम्नतम स्तर 80.05 रुपया प्रति डॉलर पर आ गया. अमेरिकी मुद्रा के मजबूत बने रहने और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के बीच रुपया शुरुआती कारोबार में डॉलर के मुकाबले अब तक के अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गया. इस साल 2022 की शुरुआत में रुपया एक डॉलर पर 74 रुपये के लगभग चल रहा था, लेकिन अभी सात महीने बीते नहीं हैं कि इसमें सात फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है. रुपया अपने सार्वकालिक स्तर पर आ गया है
एक निजी न्यूज़ चैनल के अनुसार लोकसभा में वित्तमंत्री की ओर से दिए गए लिखित जवाब में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर 2014 के बाद से रुपया 25 फीसदी तक गिर चुका है.रुपये में इतनी तेज गिरावट का आप पर क्या असर हो सकता है, हम वही देखने की कोशिश कर रहे हैं-
आयात की लागत बढ़ जाएगी
किसी देश की करेंसी कमजोर होने का मतलब है कि उसके लिए विदेशों से वस्तुओं का आयात महंगा होगा क्योंकि अब उसे पहले के मुकाबले ज्यादा पैसे चुकाने होंगे. जैसे कि मान लीजिए कि आप इस साल जनवरी में विदेश से आ रहे किसी उत्पाद पर 1 डॉलर के बदले में 74 रुपये चुका रहे थे, तो अब आपको उसी प्रॉडक्ट पर 80 रुपये देने होंगे. रुपये की कीमत अभी और गिरने की आशंका जताई जा रही है, ऐसे में हो सकता है कि विदेशी वस्तुओं को खरीदना और महंगा हो.
ईंधन-ऊर्जा महंगी
भारत अपनी तेल की कुल जरूरतों का लगभग 80 फीसदी हिस्सा आयात करता है. रुपया कमजोर होगा तो इसका असर विदेशों से आयातित किए जा रहे तेल और ऊर्जा उत्पादों पर भी पड़ेगा. इससे देश में घरेलू बाजार में उपभोक्ताओं के लिए तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं क्योंकि तेल रिफाइनरी और तेल विपणन कंपनियां अतिरिक्त भार को उपभोक्ताओं पर डाल देती हैं. हालांकि, बता दें कि पिछले कई महीनों में तेल की कीमतों ने उछाल देखा है, लेकिन इसका असर घरेलू बाजार पर नहीं दिखा है.
विदेशी शिक्षा और यात्रा महंगी
रुपये का मूल्य घटने पर विदेशी यात्रा और विदेश में पढ़ाई करना भी महंगा हो जाएगा. अगर जनवरी में आप किसी दूसरे देश जाने के लिए 1,000 डॉलर यानी लगभग 74,000 रुपये चुका रहे थे, तो अब आपको उस यात्रा के लिए 80,000 रुपये चुकाने पड़ेंगे.
छह महीने में ही यूएस की शिक्षा और यात्रा 7% हुई महंगी
रुपया डॉलर के मुकाबले पिछले छह महीनों में 7 फीसदी तक गिर गया है. इसका मतलब अब आपके लिए यूएस जाना और यूएस में पढ़ाई करना भी इन बीते छह महीनों में इतना महंगा हो गया है.
एक सकारात्मक पहलू भी है
कमजोर रुपये का यह भी मतलब है कि अब भारत में निर्यात को बढ़त मिलेगी. कमजोर रुपये से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय निर्यात के लिए ज्यादा प्रतिद्वंद्वी पैदा होगा. निर्यातक जिस उत्पाद पर 74 रुपये का मूल्य पा रहे थे, उसके लिए उन्हें अब 80 रुपये मिलेगा.