`( हमारा इतिहास )` ✊🇮🇳⚖️
*★ 22 रमज़ान उल मुबारक और उम्मत ए मुसल्मां की कुर्बानी ★*
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*“ 22 रमज़ान मुरादाबाद जंग ए आज़ादी के नायक मौलाना किफायत अली को क्या आज मुरादाबाद की आवाम जानती है, जो अपने मुल्क की आज़ादी के खातिर फांसी के तख्ते पर चढ़ कर खुद को अपने मुल्क के खातिर कुर्बान कर गए।*
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*★ हमारी आज़ादी की बुनियाद में हज़ारों नही लाखो शहीदों का खून मिला है उन्हीं में से एक नाम है मौलाना किफायत अली काफी मुरादाबादी।*
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*★ वह जंगे–आज़ादी के सच्चे योद्धा थे, उन्होंने 1857 की क्रांति में भाग लिया था, 22 रमज़ान छह मई 1858 को आज़ादी के इस दीवाने को मुरादाबाद की जेल के गेट पर फांसी दे दी गई थी। मौलाना सैय्यद किफायत अली काफी मुरादाबाद के एक रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखते थे, लेकिन वतन की मोहब्बत ने उन्हें एक मुजाहिद बनाकर अंग्रेजों के विरोध में खड़ा कर दिया था। उन्होंने इंकलाब की ऐसी लौ जलाई जिसने गुलामी के अंधेरे को मिटाने का काम किया। जनाब हज़रत मौलाना किफायत साहब कलम के सिपाही भी थे। उन्होंने तारजुमा-ए-शैमिल-ए-त्रिमीज़ी, मजूमूआ-ए-चहल हदीस, व्याख्यात्मक नोट्स के साथ, खय़बान-ए-फ़िरदौस, बहार-ए-खुल्ड, नसीम-ए-जन्नत, मौलुद-ए-बहार, जज्बा-ए-इश्क, दीवान-ए-इश्क आदि किताबें लिखीं। जंगे आज़ादी के आंदोलन को चलाने में जिन उल्मा-ऐ-किराम का नाम आता है उनमें हज़रत सैयद किफायत अली काफी ने एक अलग ही जोश भर दिया था।*
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*★ उन्होंने 1857 में अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ फतवा जारी करके मुसलमानों को जेहाद के लिए खड़ा किया। इसकी मंजिल सिर्फ आज़ाद भारत थी। वह जनरल बख्त खान रोहिल्ला की फौज में शामिल होकर दिल्ली आये। बाद में बरेली और इलाहाबाद तक गुलामी से लड़ते रहे। मुरादाबाद को अंग्रेज़ो से आज़ाद कराने के बाद मौलाना किफायत ने नवाब मजूद्दीन खान के नेतृत्व में अपनी सरकार बनाई। इसमें उन्हें सदरे-शरीयत बनाया गया व नवाब साहब को हाकिम मुकर्रर किया गया। इनके साथ अब्बास अली खान को तोपखाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।*
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*★ डिस्ट्रिक गजेटियर ( मुरादाबाद ) में लिखा है कि मुसलमानों ने जिले भर में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खुलकर आवाज़ बुलंद की, और अंग्रेज़ो से अपना लोहा मनवाया। उधर बौखलाए अंग्रेज़ हार चुके मुरादाबाद को जीतने के लिए रणनीति बनाने में जुटे थे। इस बात से बाखबर हो अंग्रेज़ अफसर जनरल मोरिस ने फौज के साथ 21 अप्रैल 1858 को मुरादाबाद पर हमला किया। हमले में नवाब मजुद्दीन शहीद हो गए और जो अंग्रेज़ी हुकूमत के हत्थे चढ़ गए उनमें से ज़्यादा तर मुसलमानों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। 30 अप्रैल को मौलाना किफायत अली काफी को गिरफ्तार किया गया। एक हफ्ते तक उन पर ज़ालीमाना तषददुद किया गया उनके जिस्म और प्रेस को गर्म कर के लगाया गया प्रेस से आप के जिस्म को छील कर उस और नमक लगाया जाता और कहा जाता कि अपना फ़तवा अपने उन अल्फ़ाज़ो को वापस लेलो लेकिन उस मुजाहिद ने अपने मुल्क भारत के लिए हज़ारों ज़ुल्म सह कर भी ज़ालिम की हिमायत नहीं की और आखरी वक्त तक अपने इरादे वा अल्फाज़ो पर कायम रहे।*
*★ जब आप को फांसी के फंदे पर लटकाया जाने लगा तो आप से आप की आखिरी ख्वाहिश पूछी गई, उस पर अपने ये नहीं कहा कि मैं अपने परिवार अपनी बीवी या बच्चों से मिलना चाहता हूं आप ने अपनी आखिरी ख्वाहिश कही के मै नाते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पढ़ना चाहता हूं।*
*★ जिसके बाद आप ने ये नाते पाक पड़ी ★*
*★ ये वो क़लाम है जो क्रांतिकारी शहीद सय्यद क़िफ़ायत अली काफ़ी ने अपने आखिरी वक़्त में पड़ा था जिसको ज़ुल्म से लड़ने वाले इंकलाबी दीवाने आज तक गुनगुना रहे हैं।*
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*★ कोई गुल बाक़ी रहेगा न चमन रह जाएगा “*
*★ बस रसूलुल्लाह का दीन-ए-हसन रह जाएगा “*
*★ हम-सफ़ीरो बाग़ में है कोई दम का चहचहा “*
*★ बुलबुलें उड़ जाएँगी, सूना चमन रह जाएगा “*
*★ अतलस-ओ-कमख़्वाब की पोशाक पर नाज़ाँ न हो “*
*★ इस तन-ए-बे-जान पर ख़ाकी कफ़न रह जाएगा “*
*★ नाम-ए-शाहान-ए-जहाँ मिट जाएँगे लेकिन यहाँ “*
*★ हश्र तक नाम-ओ-निशान-ए-पंजतन रह जाएगा “*
*★ जो पढ़ेगा साहिब-ए-लौलाक के ऊपर दुरूद “*
*★ आग से महफ़ूज़ उस का तन-बदन रह जाएगा “*
*★ सब फ़ना हो जाएँगे, काफ़ी ! व लेकिन हश्र तक » ना’त-ए-हज़रत का ज़ुबानों पर सुख़न रह जाएगा “*
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*★ इसके बाद जंगे आज़ादी की मशाल जलाने वाले इस इंकलाबी को 22 रमज़ान 6 मई 1858 को जेल के गेट पर फांसी पर लटका दिया गया जो कि जेल के गेट पर लगा पत्थर आज भी उनकी शहादत की गवाही दे रहा है।*
*★ आज अगर हम अपने आबा अजदाद की कुर्बानियों को याद करके उन्हे ज़िंदा नही करेंगे तो सात समुंदर पार से कोई नहीं आने वाला क्या आज उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद वालो को अपने इस मुजाहिद की कुर्बानी याद है अगर नही तो इस पोस्ट को मुरादाबाद के घर घर तक और पूरे मुल्क में पहुचाए जिससे कल को उनकी कब्र पर लगा वो एक पत्थर कही सिर्फ बंजर ज़मीन ना रह जाए।*
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*★ करके वफ़ा कर दिया अदा हक़ इस सर ज़मीं का ना जाने कितने ही मुजाहिदों ने सारों को कुर्बान किया ए वतन ★*
`“ अल्लाह अपने प्यारे महबूब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदके आप के दर्जात को बुलंद अता फरमाए आप को जन्नतुल फिरदौस में आला से आला मक़ाम अता फरमाए।`
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`( हमारा इतिहास )` ✊🇮🇳⚖️
( इतिहासकार “ अलतमश रज़ा खान, उत्तर प्रदेश, बरेली शरीफ)`