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आखिर गलती कहाँ हो रही…?


Newindianews/UP अगर पानी का नल चालू हो और उसके नीचे कितना भी बड़ा बर्तन रखा हो वो कभी न कभी जरूर भर जाता है और अगर नहीं भरता तो समझ लीजिए कि बर्तन में छेद हो गया है जो बर्तन को भरने नहीं दे रहा , उसके लिए दो तारीके हैं या तो बर्तन बदल दो या छेद बंद कर दो,

अगर आप गौर करेंगे तो इस्लामी कानून के हिसाब से हर साल हज़ारों करोड़ रुपए गरीबों के लिए सदका ज़कात के नाम पर निकलता है,

सवाल ये पैदा होता है कि हर साल हजारों करोड़ रुपए अगर गरीबों के लिए जा रहा है तो फिर मुसलमानों के अंदर से गरीबी खत्म क्यों नहीं हो रही आज भी सबसे ज्यादा भिखारी इसी क़ौम से आते हैं । और अगर ये पैसा दीनी तालीम पर ख़र्च हो रहा है तो तकरीबन 95 % मुसलमानों को दीनी तालीम में काबिल हो जाना चाहिए था , जबकि हकीकत ये है कि दीनी तालीम तो छोड़ो 70 % मुसलमानों को कुरान शरीफ पढ़ना या उर्दू पढना लिखना भी नहीं आती तो आखिर ये पैसा जाता कहां है ? आखिर छेद कहां पर है कि न तो गरीबी खत्म हो रही है और न ही जहालियत,

जब तक इस छेद को ढूंढ कर इसे बंद नहीं किया जाएगा तब तक क़ौम के हालात नहीं सम्भलेंगे,

भिखारी 4 तरह के होते हैं

1 ) वो  भिखारी जिनके पास दौलत तो कुछ नही है, लेकिन जिस्म हट्टा__खट्टा  है, क्यों की उनकी हराम की खाने की आदत पड़ गई है, और वो कमाना नहीं चाहते लेकिन भीख मांगने को ही उन्होंने अपना धंधा बना लिया है ऐसे को हरगिस भीख ना दें हम देते हैं इसी लिए ये मांगते हैं हम एसो को देना ही बंद करदे ये भीख मांगना बंद करदेंगे..!!

2 )  एक भिखारी वो होते हैं, जिनके पास भीख मांगते मांगते इतनी दौलत इखट्टी हो जाती है, शायद एक आम इंसान के पास भी ना हो लेकिन फिर भी वो भीख मांगते हैं, क्यों की उनकी  आदत में शुमार हो गया हर किसी के आगे हाथ फैलाना अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहे वसल्लम फरमाते हैं मैं कसम खा कर बोलता हूं जो मांगने लग जाता है अल्लाह उसके लिए मोहताजी का दरवाज़ा खोल देता है, वो हमेशा मांगने ही लगता है उसकी कभी हाज्ते पूरी नहीं होती..!!

3 )  ये लोग वो लोग होते हैं, जो खुद तो भीख मांगते ही हैं, लेकिन पैदा होते ही अपने बच्चे का भी सहारा लेना शुरू कर देते हैं, जब उनका बच्चा आंखे खोलता है, तो वो क्या देखता है, के उसका पेशा उसका काम ही भीख मांगना है, और भी इसी परमपरा में लग जाता है, और अपनी जवानी से बुढ़ापा भीख मांगने में ही निकल जाता है, मांगने वाले वो देने वाले हम गुनहगार दोनो ही हुवे,

4 ) एक भिखारी वो होता है जो हाथ पैरो से मजूर है, कुछ काम धंधा नहीं कर सकते, कुछ कमा नहीं सकता जिसकी मजबूरी है भीख मांगना, तो सिर्फ एसो को ही भीख देना का हुकुम है, तो आज से सभी भाई इस बात का खयाल रखे,

नोट :   इस्लाम में किसको भीख मांगना चाहिए अगर किसी का बाप मर जाए और उसके पास कफन के पैसे ना हो, और उसके पास एक फटी हुई चादर ही हो, तो हुकुम आया है, के वो अपने बाप को उस चादर में ही दफन करदे लेकिन किसी के आगे  हाथ न फैलाए भीख ना मांगे,

एक बार अल्लाह के रसूल के पास एक भिखारी आया और कहने लगा के अल्लाह के नाम पर कुछ देदें, तो अल्लाह के रसूल फरमाते हैं बता तू काम क्या जनता है, हुनर क्या आता है तुझे, तो पता ये चला अगर कोई भिखारी आए भी तो उसे भीख देने से अच्छा है, अपने नबी की सुन्नत पे अमल करो उसको कोई काम करवादो या किसी काम पर लगवादो,

अल्लाह के रसूल चाहते थे के उनकी उम्मत मांगने वाली ना बने देने वाली बने, और आज इस कौम का हाल ये है, के सबसे ज़्यादा इसी कौम के लोग भीख मांग रहे हैं, और अपने लिए मौहताजी का दरवाज़ा खोल रखा है।।

अगर हर शहर में एक 200 बड़े लोगो की तंजीम बन गई और हर हफ्ते एक इंसान ने मात्र 125₹ भी दिए तो एक महीने के एक इंसान के 500₹ हो गए और 200 लोगो ने हर महीने 500₹ दिए तो एक महीने के 100000₹ एक लाख रुपए हो गए, अगर हम ये पैसे हर रोज़ के हिसाब से जोड़ें तो मुश्किल से रोज़ के 20₹ भी नही हो रहे हैं, अगर देखा जाए तो इससे ज़्यादा पैसे आज ये कौम फालतू खर्च गुटखा, सिगरेट, तंबाकू में बर्बाद कर देती है, तो अपनी कौम के लिए ये क्यू नही किया जा सकता अब ज़रा सोचिए हर महीने इन एक लाख रुपए से आप कम से कम एक गरीब परिवार को कोई काम कारोबार तो करा ही सकते हैं, या किसी गरीब की बेटी की शादी तो कर ही सकते हैं जिससे कल को किसी गरीब को कर्ज़ या किसी के आगे शर्मिंदा या हाथ फैलाने की ज़रूरत ना पड़े, और अगर देखा जाए तो आज के वक्त में जो मुसलमान लड़कियां पूरी कौम की बदनामी करके बदमाज़हबो के साथ भाग रही हैं इसमें 90% लड़कियां गरीब परिवार से वो होती हैं जो इधर उधर घर से निकल कर कही ना कहीं नौकरी कर रही होती हैं अपनी गरीबी की वजह से, और दूसरे लोग उनकी इसी कमज़ोरी का फायदा उठा रहे हैं, सोचने वाली बात है हर महीने कोई एक ऐसे परिवार की स्थिति सुधर सकती है जिस घर में किसी गरीब की बेटी बैठी हो या फिर जिस घर में भीख मांगी जाती होगी, इस एक छोटी सी पहल से कौम को काफी बड़ा फायदा हो सकता है एक बार हर शहर का एक ज़िम्मेदार आदमी इस बारे में ज़रूर सोचे और अपने मिलने वालो से मशवरा करे।

गौर_ज़रूर करा जाए इस बात पर अगर हालातो पर काबू पाना है तो

क्योंकि बिना गौर किये हुये हमारे हालात नहीं बदलने वाले , और ना ही हमारी आने वाली नस्लें सुधरने वाली हैं , इसके लिए हमे ज़मीनी स्तर से अपनी कौम के लिए अपने दीन के लिए मेहनत करना पड़ेगी..!!

लगा कर आग खुद को एक लौ जलानी है

हर उम्मीद अभी वाकी है इस कौम के सहारे

 

अलतमश रज़ा खान
( उत्तर प्रदेश शहर बरेली मोहल्ला शाहबाद )
मो. 6397753785

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