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क्या वाकई आज़ादी से पहले जिन मुसलमान हुक्मरानों ने इस मुल्क पर हुकूमत करी वह ज़ालिम थे ?

Newindianews/UP अक्सर लोग पूछते हैं के आज कल की जनरेशन को देखते हुवे आज कल के युवा को देखते हुवे आप का इतिहास में इंटरेस्ट कैसे बड़ा कैसे आप को खयाल आया के आप अपने बुजुर्गों की और अपने आबा अजदाद की बीती तारीखों को बयां करें व्हाट्सएप के ज़रिए, तो अगर देखा जाए और मैं कहूं के मैं एक 26 साल का युवा नौजवान लड़का आखिर इस लाइन में क्यू आया क्यू मैं लोगो को मुस्लिम हिस्ट्री के बारे में बताने लगा और लोगो को अपने साथ जोड़ता चला गया,

तो जब बात आज कल के युवा की आती है तो इसकी शुरुआत भी आज कल के माहौल को देखते हुवे ही करनी पड़ी, जब मैंने अपने ही मुल्क में अपने आप को गैर सुना, गैर जाना, जैसे के आज़ादी के बाद हिंदोस्तान से मेरा या मुसलमानों का इस मुल्क से कोई तालुक ही नही, जब मैंने देखा के लोगो का नज़रिया मुसलमान को लेके ऐसा है जैसे अंग्रेजों के बाद इस मुल्क में कब्ज़ा अब मुसलमान करना चाहते हैं और ज़बरदस्ती रह रहे हैं, जब मैंने लोगो के मुंह सुना के सभी मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए यहां उनका कुछ नही है, जब मानने अपने आबा अजदाद और तमाम मुसलमान बादशाह और सुलतानों को ज़ालिम और ज़ुल्म करने वाला सुना,

फिर मैं एक सोच में पड़ गया जैसे के एक चिंता सी सताने लगी मैने सोचा क्या वाकई आज़ादी से पहले जिन मुसलमान हुक्मरानों ने इस मुल्क पर हुकूमत करी वह ज़ालिम थे उन्होंने हिंदुत्व और कमज़ोरो पर ज़ुल्म किया,

मैंने सोचा क्या वाकई हिंदुस्तान के मुसलमानों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए,

क्या वाकई हमारा इस मुल्क से कोई ताल्लुक नहीं है,

फिर मैं आज़ादी के 1947 से पहले गया जब ब्रिटिश सरकार थी फिर मैंने इनके बारे में पड़ा कि कैसे ये गोरी चमड़ी के लोग किस तरह से कारोबार के बहाने इस मुल्क में आए और कैसे-कैसे अपने कदम जमाए और कैसे कैसे आहिस्ता आहिस्ता इस मुल्क पर काबिज़ हो गए,

जब ब्रिटिश हुकूमत इस मुल्क पर काबिज हो गई और ये मुल्क गुलामी की तरफ बड़ रहा था, तो मैंने पड़ा कि कैसे बहादुर शाह जफर ने अपने जवान बेटों को अपने मुल्क के खातिर कुर्बान कर दिया,

फिर मैंने पढ़ा की कैसे शेरे मैसूर हज़रत टीपू सुल्तान ने अपने मुल्क के खातिर अपनी पूरी सल्तनत को और खुद को कुर्बान कर दिया और अपने मुल्क के खातिर उसको आज़ाद कराने की आस में शहीद हो गए फिर मैं सोच में पड़ गया यह वही टीपू सुल्तान है जिनको आजकल के कुछ नादान न जाने क्या क्या बोलते हैं कोई हिंदू विरोधी बोलता है तो कोई कुछ बोलता,

फिर जब 1857 की क्रांति की बात आई तो एक गुमनाम नाम सामने आया जिनका नाम था मौलवी अहमदुल्लाह शाह, जिनके ऊपर 12 अप्रैल 1858 को गवर्नर जनरल कैनिंग ने उन्हें गिरफ्तार करने के लिए इस वक्त 50, 000 रुपये ईनाम का एलान किया जिस पर भारत के सचिव जी. एफ. ऐडमोंस्टन के दस्तखत थे। और इसी इनाम के लालच में आकर पुवायां के अंग्रेज परस्त राजा जगन्नाथ सिंह ने उन्हें आमंत्रित कर 15 जून 1858 को धोके से उन्हें गोली मार कर शहीद कर दिया।

और देखते ही देखते खान अब्दुल गफ्फार खान, अब्बास अली, अफसर अली, मौलाना मजहरूल हक, पीर अली खान जैसे अनगिनत गुमनाम नाम मुस्लिम नाम सामने आए जिन्होंने इस मुल्क की आजादी के खातिर खुद को कुर्बान कर दिया और कितनो ने शहादत का जाम पी लिया।

फिर मुझे पता चला कि इस मुल्क के लिए कुर्बानी भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, झांसी की रानी या सुभाष चंद्र बोस या फिर गांधी जी ने ही नहीं दी थी बल्कि हज़ारों मुसलमानों ने इस मुल्क की मिट्टी को अपने खून से सीच कर इस को आजाद कराया,

जब मैंने इन सब के बारे में पढ़ा तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया और मुझे पता चला कि इस मुल्क में मैं कोई गैर या अनजान नहीं हूं मुझे पाकिस्तान जाने की ज़रूरत नहीं है, यह वही मुल्क है जिसको हमारे आबा अजदाद हमारे बुजुर्गों ने अपना खून बहा कर, हजारों शहादते देकर आज़ाद करवाया, ये मुल्क बराबर से हम सब का मुल्क है,

सिर्फ मुसलमान मर्द ही नहीं मुसलमान औरतें भी बेगम हज़रत महल, अबीदा बानो बेगम, बीबी अम्तुस सलाम, बाजी जमालूननिसा हैदराबादी, अम्मा बी, बेगम निशातुन्ननिसा मोहानी जैसी ना जाने कितनी मुस्लिम महिलाओं ने खुद को इस मुल्क के खातिर कुर्बान कर दिया,

अलहमदुलिल्ला मुझे तमाम लोगों के बारे में पढ़कर एक दिली खुशी महसूस हुई और खुद के ऊपर फक्र महसूस हुआ के कैसे हमारे बुजुर्गों में इस मुल्क को आज़ाद करवाया,

फिर मैंने सोचा इन सब लोगों के बारे में जानने से पहले जो फिकर मुझे सता रही थी अपने ही मुल्क में गैर, अंजान और अजनबी की तरह ऐसे ही ना जाने कितने मुसलमान होंगे जिनको पता नहीं होगा कि इस मुल्क में हमारा किरदार क्या है आखिर इस मुल्क की खातिर हमने कितनी शहादते दी है यह मुल्क हमारा भी है या नहीं क्या,

मैंने सोचा क्यों ना एक मुहीम चलाई जाए अपने तमाम भाइयों को अपनी बीती तारीखे और अपना इतिहास जानने की जिससे लोगो को पता चले और जिससे कल को कभी किसी को मायूस या फिर शर्मिंदा ना होना पड़े, और सीना चौड़ा करके बता सकें के इस मुल्क में हमारा वजूद क्या है हमारा किरदार हमारी पहचान क्या है

जिसकी शुरुआत मैंने एक लिंक बनाकर एक ग्रुप से करी थी, और आज उस लिंक के ज़रिए हिंदोस्तान के तमाम भाई मुझसे जुड़ गए और वह जिससे हम खुद को पहचान सके कि हम कौन हैं क्या हैं इस मुल्क में हमारा वजूद क्या है हमारा वकार क्या है।

मिट्टी में पानी मिलाओ तो गारा बनता है,
और खून मिलाओ तो वतन

 

अलतमश रज़ा खान
यूपी , शहर बरेली मोहल्ला शाहबाद )
फ़ोन : 6397 753 785

 

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