New India News/Desk
छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के 14 हज़ार से अधिक संविदा कर्मचारियों ने सामूहिक इस्तीफ़ा दे दिया है। यह कदम तब उठाया गया जब स्वास्थ्य विभाग ने आंदोलन का नेतृत्व कर रहे 25 कर्मचारियों की सेवा समाप्त कर दी। 18 अगस्त से जारी आंदोलन शुक्रवार को 19वें दिन में प्रवेश कर गया है, जिससे प्रदेशभर की स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हैं।
कर्मचारियों की 10 सूत्री मांगें
संविदा कर्मचारी सेवाओं के नियमितीकरण, वेतनवृद्धि और अन्य सुविधाओं की मांग कर रहे हैं। आंदोलन की वजह से पोषण पुनर्वास केंद्र, आंगनबाड़ी और सरकारी स्कूलों में बच्चों की स्वास्थ्य जांच जैसी आवश्यक सेवाएं प्रभावित हुई हैं।
सरकार का कहना है कि 10 में से 4 मांगों को मान लिया गया है, जिनमें 27% वेतन वृद्धि और न्यूनतम 10 लाख रुपये की कैशलेस स्वास्थ्य बीमा योजना शामिल है। वहीं, कर्मचारियों का कहना है कि सरकार सिर्फ़ कागज़ी आश्वासन दे रही है और अब तक कोई ठोस अधिसूचना जारी नहीं हुई है।
सरकार और कर्मचारियों में तकरार
राज्य मिशन निदेशक डॉ. प्रियंका शुक्ला का दावा है कि चार मांगें स्वीकार कर ली गई हैं और बाक़ी पर उच्च स्तर पर विचार चल रहा है। वहीं, बर्खास्त कर्मियों में से एक हेमंत कुमार सिन्हा का कहना है, “अगर हज़ारों कर्मचारी एक ही मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, तो सिर्फ़ 25 को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? हम आंदोलन को और तेज़ करेंगे।”
कांग्रेस का हमला, सरकार घिरी
कांग्रेस ने सरकार पर संविदा कर्मियों की अनदेखी का आरोप लगाया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने कहा, “बीजेपी ने मोदी की गारंटी के नाम पर नियमितीकरण का वादा किया था, लेकिन अब लाठीचार्ज और बर्खास्तगी कर रही है। यह तानाशाही है।”
पूर्व उपमुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव ने भी माना कि संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण न होना बीजेपी की बड़ी नाकामी है।
जमीनी असर
राजधानी रायपुर के ज़िला अस्पताल में भीड़ कम दिखी और आपातकालीन सेवाओं के अलावा अन्य सेवाएं प्रभावित रहीं। ग्रामीण और दूरदराज़ क्षेत्रों में स्थिति और गंभीर बताई जा रही है।
एनएचएम संविदा कर्मचारियों में डॉक्टर से लेकर नर्स और सफाईकर्मी तक शामिल हैं। इनका कहना है कि एक ही काम के लिए स्थायी कर्मचारी तीन गुना वेतन पा रहे हैं जबकि संविदा कर्मियों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।
सरकार जहां मांगों को ‘प्रक्रिया में’ बता रही है, वहीं कर्मचारियों का आरोप है कि चुनावी वादों के बावजूद अब तक सिर्फ़ आश्वासन ही मिले हैं।