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नेता प्रतिपक्ष पद को लेकर विकास उपाध्याय ने दिखाई ताकत, पार्टी को बदलना पड़ा फैसला

नेता प्रतिपक्ष पद को लेकर विकास उपाध्याय ने दिखाई ताकत, पार्टी को बदलना पड़ा फैसल

रायपुर नगर निगम चुनाव में कांग्रेस को करारी हार मिली है, लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस के अंदरखाने की राजनीति थमने का नाम नहीं ले रही है। हार के बावजूद कांग्रेस पार्टी के अंदर नेता प्रतिपक्ष के चयन को लेकर बड़ा बदलाव देखने को मिला है। शुरू में पार्टी ने संदीप साहू को नेता प्रतिपक्ष घोषित किया था, लेकिन बाद में वरिष्ठ कांग्रेस नेता विकास उपाध्याय के दबाव में आकर यह फैसला पलट दिया गया। यह घटनाक्रम बताता है कि विकास उपाध्याय की पकड़ अभी भी पार्टी के अंदर मजबूत बनी हुई है।

रायपुर नगर निगम में भले ही कांग्रेस को बहुमत से पीछे हटना पड़ा हो, लेकिन जो पार्षद चुनाव जीतकर आए हैं, उनमें बड़ी संख्या में विकास उपाध्याय समर्थक शामिल हैं। इससे यह साफ हो गया कि भले ही संगठनात्मक स्तर पर कांग्रेस कमजोर हुई हो, मगर विकास उपाध्याय की जमीनी पकड़ अब भी बरकरार है।

ज्ञात हो कि विधानसभा और लोकसभा चुनावों में पार्टी को करारी हार झेलनी पड़ी थी। इसके बाद संगठन में नए चेहरों को मौका देने की रणनीति के तहत रायपुर शहर कांग्रेस ने दूसरी बार पार्षद बने संदीप साहू को नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया था। संदीप साहू ने महापौर के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में नेता प्रतिपक्ष के रूप में शिरकत भी की थी। सब कुछ तयशुदा लग रहा था।

लेकिन अचानक समीकरण बदले और पार्टी ने अपने पहले फैसले को पलटते हुए नेता प्रतिपक्ष पद किसी और को देने का निर्णय ले लिया। बताया जा रहा है कि यह सब कुछ विकास उपाध्याय के दबाव और राजनीतिक प्रभाव के चलते हुआ। विकास उपाध्याय फिलहाल असम प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी हैं और दिल्ली में उनका संगठन पर मजबूत पकड़ मानी जाती है।

दिल्ली दरबार में उनकी अच्छी पकड़ और सक्रियता के चलते उनके सुझावों और निर्णयों को नजरअंदाज कर पाना पार्टी के लिए आसान नहीं होता। यही वजह रही कि रायपुर शहर कांग्रेस के पहले से तय फैसले को बदलते हुए विकास उपाध्याय के समर्थक को ही नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई।

हालांकि इस फैसले के बाद साहू समाज में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। साहू समाज रायपुर सहित पूरे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहा है। ऐसे में समाज के नेता को किनारे करना कांग्रेस के लिए नुकसानदेह हो सकता है। नाराजगी को भांपते हुए पार्टी अब ‘प्लान बी’ पर काम कर रही है।

सूत्रों के अनुसार कांग्रेस अब रायपुर शहर अध्यक्ष पद पर साहू समाज के किसी नेता को मौका देने की योजना बना रही है। इससे समाज की नाराजगी को कम करने की कोशिश की जाएगी। साथ ही यह भी चर्चा है कि अब शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद ब्राह्मण समाज से नहीं होगा, ताकि समाजों के बीच संतुलन बनाया जा सके।

यह घटनाक्रम कांग्रेस की आंतरिक राजनीति और गुटबाजी को भी उजागर करता है। एक तरफ संगठन युवाओं को आगे लाने की बात करता है, तो दूसरी ओर पुराने और प्रभावशाली नेता अपने गुट के बल पर फैसलों को प्रभावित कर देते हैं। विकास उपाध्याय का यह कदम न सिर्फ उनकी ताकत को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि पार्टी के निर्णय अब भी ‘दिल्ली दरबार’ के इशारों पर बदल सकते हैं।

इस पूरे घटनाक्रम से कांग्रेस को क्या फायदा मिलेगा और क्या नुकसान, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन फिलहाल पार्टी को साहू समाज की नाराजगी से जूझना पड़ सकता है। अगर इस नाराजगी को समय रहते नहीं संभाला गया, तो इसका असर आगामी नगर निगम उपचुनावों और विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है।

सवाल यह भी है कि क्या ऐसे फैसलों से पार्टी की विश्वसनीयता पर असर नहीं पड़ता? जब एक नेता को सार्वजनिक रूप से नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया गया था, तब उस फैसले को पलटना पार्टी की नीति-निष्ठा पर भी सवाल खड़े करता है।

फिलहाल, रायपुर की राजनीति में यह मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है और कांग्रेस के भीतर का यह टकराव आने वाले दिनों में और क्या रूप लेता है, इस पर सभी की नजर बनी हुई है।

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