उत्तर प्रदेश के युवा इतिहासकार जनाब “अलतमश रज़ा खान” की कलम से….
Newindianews/UP कौन इनकार कर सकता है की मुसलमानों की तारीख इस कदर दरखशां है कि अगर हमारे नौनीहालो को सही तारीख पढ़ाई जाए तो उनमें फिक्र व अमल की तहरीर पैदा होना कुछ ज़्यादा मुश्किल नहीं है
और इसके बरअक्स तारीख से गफलत वरतना और यह कहना की तारीख मुर्दा लोगों की दास्तान हैं तारीख से मुंह फेर लेना या गलत तारीखी वाकिआत पर खामोश या मुतमाईन होकर बैठ जाना हमारी कौमी शुऊर और खुद_ऐतिमादी के लिए इंतिहाई मुज़िर है, तो इसी के साथ आज हम आप को मुगल सल्तनत से जुड़ी की एक तारीख के बारे में बताने जा रहे हैं, जो ताज महल जैसी खूबसूरत इमार के तौर पर भारत को एक नायाब तोहफा देने वाले बादशाह शाहजहां और उनके बेटे सुल्तान उल अज़ीम बादशाह हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर से जुड़ी है,
ये बात आज से 400 साल पहले की है जब मुगल तख्त पर बादशाह शाहजहां बैठे थे और भारत पर उनकी हुकूमत थी,
साथ ही तख्त की तरफ तेज़ी से बड़ने वाले अगले वारिस बादशाह शाहजहां के चारो बेटे जो बहुत ही तेज़ी के साथ जवानी की उरूज पर चढ़ रहे थे जो शाहजहां के लिए एक परेशानी की वजह बनती जा रही थी,
क्यों की शाहजहां एक हुक्मरान होने साथ एक इंसान भी थे शाहजहां को अपने बाद अपने चारो बेटो में से तख्त के लिए किसी एक को मूंतखिब करना था,
और चारो बेटो में से शाहजहां के सबसे अज़ीज़ उनके बड़े बेटे दराशिकोह थे जिससे वो बहुत ही मोहब्बत करते थे, लेकिन वो खुद से दारा का नाम नहीं ले सकते थे क्यू की तख्त के वारिस उनके वाकी 3 बेटे और भी थे।
वक्त के साथ इसी बात का फैसला करने के लिए एक दिन शाहजहां ने एक दरबारे खास लगाया और शहंशाह शहाबुद्दीन मोहम्मद शाहजहां ने उमरा और वुज़रा को मुखातब किया और कहा क्या आप को मालूम है की हम ने आज का दरबारे खास क्यों बुलवाया है,
http://“हमर छत्तीसगढ़” आसिफ इक़बाल की कलम से अंक 64 -https://newindianews.in/news/457175
सब दरबारी खामोश रहे किसी ने जवाब नही दिया
फिर शहंशाह ने एक अमीर की तरफ उंगली उठाते हुए दरियाफ्त किया पंच हज़ारी अमीर तुम बताओ
अमीर ने अर्ज़ किया ज़िल्ले सुबहानी आप की अकल की गहराई तक मैं कैसे पहुंच सकता हूं गुलाम जवाब देने से कासिर है आली जहां।
अब शाहजहां ने काज़ीयुल कुज़्ज़ात की तरफ देखा और कहा मोहतरम काज़ी आप को मेरे दिल का हाल ज़रूर मालूम होगा
काज़ी जी ने जवाब दिया ज़िल्लुल्लाह दिलों के हाल तो सिर्फ अल्लाह ही जानता है इंसान की क्या मजाल कि वह किसी के दिल का हाल जान सके
उस पर शाहजहां ने कहा दुरुस्त फरमाया काज़ी जी,
फिर बादशाह ने कहा अब हम इस बात का इज़हार खुद करेंगे कि इस इजलास की ज़रूरत क्यों पेश आई,
तो सुनिए सल्तनते मुगलिया के तमाम वफादार जानते हैं कि तख्त वा ताजे हिंद के वारिस यानी हमारे चारों शहजादे बड़े तेजी से जवानी की हुदूद की तरफ बढ़ रहे हैं
ज़ाहिर है कि हम अपने वरसा में सिर्फ एक तख्त और एक ताज छोड़ेंगे और इन शहजादो में से सिर्फ एक शहजादा ही आइंदा का शहंशाह ए हिंद बनेगा
अब आप लोग अपनी अपनी राय दीजिए कि तमाम शहजादे में कौन शहजादा इस एजाज़ का अहल है और क्यों।
इतना सुनते दरबार में एक सन्नाटा सा छा गया क्योंकि किसी एक शहजादे का नाम लेकर बाकी तीन शहजादो की दुश्मनी मोल लेना थी
थोड़ी देर बिलकुल सन्नाटा रहा फिर सरगोशियों का अगाज़ हुआ और इशारों ही इशारों में दरबारी एक दूसरे को अपना मकसद समझाने की कोशिश करते रहे मगर बोलने की किसी की हिम्मत ना हुई
आखिर शहंशाह ने इस खामोशी और सुकूत को भी खुद ही तोड़ा और कहा हम देख रही हैं कि दरबारी किसी एक शहज़ादे का नाम लेते हुए हिचकीचा रहे हैं
हमारे वफादार अपने दिल में किसी किस्म का खौफ ना लाएं और जिसे जो शहजादा ज़्यादा पसंद हो और उसके ख्याल में वो शहजादा इस मर्तबे का अहल हो वह बेधड़क उसका नाम पेश कर दे।
शहनशाह ने देखा कि दरबारी अब भी अपनी ज़ुबान खुलने पर आमादा नहीं है क्योंकि दरबारी जानते थे बादशाह को सबसे ज्यादा अज़ीज़ और मोहब्बत अपने बड़े बेटे दाराशिकोह से है और इस बिना की मोहब्बत पर वो चाहते हैं उनके अमीर वा वज़ीर उनकी ज़िंदगी में ही दराशिकोह को वलीअहदे तस्लीम कर दें जिससे बाद में कोई झगड़ा न हो सके
और बादशाह खुद भी उसका नाम अपनी जुबान से नहीं ले सकते इसीलिए उन्होंने हमें यहां बुला कर दरबार रखा है,
और दरबारियों के लिए भी किसी एक का नाम लेना किसी कयामत से कम नहीं था,
फिर शहंशाह ने काज़ीयुल कुंज़ात से कहा हमें अफसोस है कि हम आपको दोबारा ज़हमत दे रहे हैं
काज़ी जी पर जैसे के मुसीबत आ गई हो
लेकिन काज़ी जी बहुत होशियार थे और इस तरह की मुश्किलात के आदि थे
इसलिए उन्होंने शहंशाह और दरबारियों के सामने एक आसान हल पेश किया और कहा जिल्ले सुब्हानी अल्लाह आपकी उम्र दराज करें और आप का साया हम पर कयामत तक कायम रहे।
खुदा की रहमत से अभी आप खुद हयात हैं और शहज़ादे के इंतेखाब में जिल्ले सुब्हानी की राय भी एक खास अहमियत रखती है इसीलिए मैं आली जहां से दरख्वास्त करता हूं कि वह सिर्फ यह फरमाए कि उन्हें किस शहजादे से ज्यादा मोहब्बत है अगर हुजूरे आला अपनी मोहब्बत का इजहार फरमा दे तो बंदगाने आली को फैसला करने में ज्यादा आसानी होगी
और इस तरह काज़ी जी ने अपनी ज़हानत से खुद के ऊपर आती हुई बला को शहंशाह पर डाल दिया
दरबारी भी काज़ी जी से बहुत खुश हुए और एक अमीर ने फौरन ताईद करते हुए कहा आली जहां, काज़ी जी ने हम हम सबके दिलों की तर्जुमा नी करदी, आप फरमाएं आप किस शहज़ादे से ज़्यादा मोहब्बत करते हैं वाकी फैसला हम खुद कर देंगे
अब शहंशाह खुद मखमसे में फस गए क्यू की उनके अमीर और उनके वज़ीर उनसे भी 10 कदम आगे निकले
और शहंशाह दराशिकोह को लेकर दरबारियों पर ज़ोर भी नही डाल सकते थे वरना आवाम में ये बात फैल जाती के शहंशाह ने दरबारियों पर ज़ोर देके दाराशिकोह को वलीअहद नामज़द कर दिया।
शहंशाह ने भी होशियारी दिखाए हुवे कहा
इस मसले को एक और तरह से हल कर देंगे और इसका फैसला आज ही होगा
आज शाम फिर दरबारे ख़ास मुनाकिद होगा लेकिन उसका इजलास इस दरबारे ख़ास में नहीं बल्कि इसके बराबर वाले हॉल में होगा आप सब लोग वहां जमा होंगे,
और इस बात का जिक्र बाहर किसी से भी न करा जाए खास तौर पर शहज़ादो से दरबारियों ने कहा हम लोग अपनी ज़ुबान पर ताले लगा लेंगे आली जहां।
शाम को फिर दूसरा दरबारे खास लगा जो की पहले वाले दरबार के बराबर में था सब दरबारी मौजूद हो गए
और शहंशाह ने कहा हमने सुबह कहा था कि शहज़ादो के बारे में हम आज किसी नतीजे पर पहुचेंगे, इसी लिए ये दूसरी जगह दूसरा दरबार लगाया है इस हाल में।
उसके बाद कहा हम आज एक ऐसा खेल खेलेंगे जो बज़ाहिर एक बचकाना हरकत मालूम होगी और इस तरतीब से हम शाहज़ादो की अहलियात और ज़िहानत का अंदाज़ा लगा सकेंगे।
फिर शहंशाह ने कहा हम यहां चारो शाहज़ादो को बुलाएंगे और उन्हें हुकुम देंगे वो सब दरबारे खास में जाएं और अपनी पसंद की नशिस्त पर जाके बैठ जाएं शहज़ादो को अच्छी तरह मालूम है की हमारा कौन सा अमीर या वज़ीर किस नशिस्त पर बैठता है,
और हर शाहज़ादा अपनी समझ व दानिश और ज़हानत से कोई ना कोई नशिस्त संभाल लेगा, अब ये हमारा और आप का काम है की हम अंदाज़ा लगाएं कि हमारा कौन शाहज़ादा किस ज़िहन का मालिक है,
और इस बचकाना खेल का मतलब यह हरगिज़ नहीं है कि आप वलीअहद के लिए कोई फौरी फैसला करेंगे,
बल्कि यह बात अपने ज़िहन में रखें और जब हम किसी वक्त वलीअहद का फैसला करें तो आप उसे इस खेल में निज़ाम पर तौलें की कौन किस औहधे के लिए सलाहियत रखता है।
उसके बाद शहंशाह ने चारो शहज़ादो को एक साथ अपने हुज़ूर तलब किया शाहज़ादे हैरान थे क्यों की बादशाह ने आज तक चारो शाहज़ादो को अचानक कभी एक साथ तलब नही किया था,
शाहजहां ने शाहज़ादो चुप्पी तोड़ने के लिए कहा
आज हमारे दरबारी हमारे चारो शहज़ादो को एक साथ देखना चाहते थे इसी लिए आप चारो को यहां तलब किया गया है।
उसके बाद शहंशाह ने शाहज़ादो से कहा शाहज़ादो को मालूम होना चाहिए कि हम दरबारे खास के बजाए इस वक्त इस छोटे से हॉल में क्यों इजलास कर रहे हैं
क्या आप को पता है हमारा दरबारे ख़ास इस वक्त बिल्कुल खाली है शाहज़ादो को हुकुम दिया जाता है कि वह दरबार खास में जाएं और वहां किसी एक नशिस्त पर जिस पर वह चाहे बैठ जाए।
सब शहज़ादे हैरान हो गए।
फिर शहंशाह ने कहा तुम हैरान क्यों हो रहे हो हमने जो हुकुम दिया उसे बजा लाओ,
शहंशाह के इस हुकुम पर मुहैयुद्दीन औरंगजेब ने सवाल किया शहंशाह बाबा हम दरबारे ख़ास में जिस नशिस्त पर बैठेंगे, फिर वह शख्स जब दरबार में आएंगे तो वह कहां बैठेगे क्या वह हमें उठा देंगे,
शहंशाह ने कहा हरगिज़ नहीं तुम जिस निशस्त पर बैठ जाओगे तुम्हें वहां से कोई नहीं उठाएगा यह हमारा हुकुम है।
फिर सब शाहज़ादे बराबर वाले दरबारे ख़ास में दाखिल हो गए
उन्होंने दरबार की नशिस्तो पर नजर दौड़ाई
सामने की तरफ एक कदरे बलंद जगह पर शहंशाह शाहजहां का नया-नया बना हुआ तख्ते ताऊस पूरी आब वा ताब के साथ जगमगा रहा था
तख्त के दाएं हाथ पर वजीरे आज़म की खूबसूरत नशिस्त थी
और बाएं तरफ वैसे ही एक नशिस्त सिपहसलारे अफवाज़े शाही की नशिस्त थी
एक तीसरी नशिस्त उसके साथ लगी थी जिस पर दूसरे मुमाकिल से आए हुए सफीर या वालियाने रियासत बैठते थे
औरंगजेब और मुराद अभी नशिस्ते देख ही रहे थे कि दारा शिकोह ने आगे बढ़कर वज़ीर ए आज़म की नशिस्त पर कब्जा कर लिया
और शूजा सिपहसालार की नशिस्त पर बैठ गए
मुराद को मेहमाने वालियाने रियासत की नशिस्त पसंद आ गई और उन्होंने उस तरफ कदम बढ़ा दिए
अब शहजादा मोहियुद्दीन औरंगजेब अलमगीर बाकी रह गए थे
जिसे अपने लिए नशिस्त का इंतखाब करना था
मगर वह निहायत इतमीनान से खड़े थे दरबार हॉल और नशीस्तो पर तायराना नजरें डाल रहे थे।
उसके सकून से तो यह जाहिर हो रहा था जैसे उन्हें किसी नशिस्त पर बैठना ही नहीं है
औरंगजेब के तीनो भाई जो अपनी अपनी पसंदीदा नशिस्तो पर बैठ चुके थे
वह बड़ी दिलचस्पी और तजससुस भरी नजरों से औरंगजेब को देख रहे थे
मुमकिन है कि वह दिल ही दिल में इस बात पर खुश भी हो रहे हो कि औरंगजेब ने नशिस्त के इंतखाब में देर करके खुद अपना ही नुकसान किया है
अब उसे किसी कम दर्जा के अमीर की नशिस्त पर बैठना पड़ेगा
फिर हल्के हल्के औरंगज़ेब के पैरो में हरकत हुई सब भाइयों की नज़रे औरंगज़ेब पर जमी हुई थीं।
उन्होंने नशिस्तो पर बैठे हुवे भाइयों पर कोई तवज्जो नहीं दी और आगे बढ़ते गए।
फिर अपने भाईयो को देखा फिर सामने की तरफ देखा औरंगज़ेब के सामने शहंशाह शाहजहां का तख्ते ताऊस अपनी पूरी रानाइयों से जग मग जगमगा रहा था,
औरंगज़ेब उसके आगे बड़े तख्त को देखा और बड़े ही इत्मीनान और सुकून के साथ तख्ते ताऊस पर बिल्कुल इस तरह बैठ गए जैसे शहंशाह शाहजहां बैठते थे,
दाराशिकोह और मुराद के दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगे उनको औरंगज़ेब की इस हरकत पर घुसा भी आया और दाराशिकोह को इतना तैश आया की वो खड़ा हुआ और चीख कर कहा ये क्या बत्तमीज़ी है औरंगज़ेब,
औरंगज़ेब ने दारा को तेज़ नज़रों से घूरते हुवे कहा बत्तमीज़ी कैसी क्या शहंशाह बाबा ने नही कहा था जो जहां चाहे जिस नशिस्त पर बैठ जाए
दारा ने गुस्से में कहा क्या तुम नही जानते हो शहंशाह बाबा की नशिस्त पर बैठना बत्तमीज़ी ही नहीं जुर्म भी है।
औरंगज़ेब मुस्कुराए और कहा तुम वज़ीर ऐ आज़म की नशिस्त पर बैठे मैने कुछ कहा आप को जो नशिस्त पसंद आई आप उस पर बैठ गए मेरे हौसलो ने तख्त ऐ ताऊस पसंद किया मैं यहां आ बैठा।
दाराशिकोह और ज़्यादा जल भुन गए और कहा आने दो बाबा को फिर तुम्हे अपने हौसलो की सज़ा मिलेगी
उसी वक्त शहंशाह शाहजहां अपने तमाम बड़े बड़े उमरा और वुज़रा के साथ दरबार में दाखिल हुवे उनकी पहली नज़र तख्त ऐ ताऊस पर पड़ी जिस पर शाहज़ादे औरंगज़ेब निहायत इत्मीनान और बेखौफी से बैठे थे
ये देखते ही शाहजहां के कदम जैसे जमीन ने जकड़ लिए हो वो हैरान और हक्का बक्का रह गए की क्यों की उनके तसव्वर में भी नहीं था कि कोई शहजादा तख्ते ताऊस पर बैठने की हिम्मत कर सकता है
दराशिकोह ने भी इस बात की शिकायत शहंशाह से करी लेकिन औरंगज़ेब शाहजहां के कुछ बोलने से पहले ही बोले और कहा बाबा क्या आप ने नही फरमाया था जिसकी जहां मर्ज़ी हो वो उस नशिस्त पर जाके बैठ जाए
सब अपनी अपनी नशिस्त पर जाके बैठ गए मुझे तख्ते ताऊस पसंद आया मैं वहां बैठ गया दारा भाई एतराज़ क्यों कर रहे हैं,
शहंशाह के ऊपर जैसे परेशानी का पहाड़ टूट पड़ा हो उनकी समझ में नहीं आ रहा था की क्या करे फिर शाहजहां ने पलट कर अपने दरबारियों को देखा वह सब भी हैरत के समंदर में गोते लगा रहे थे
वह कभी तख्त पर बैठे औरंगजेब को देखे तो कभी दाराशिकोह को
फिर शाहजहां ने थकी थकी आवाज़ में दरबारियों से कहा शाहज़ादो की नशीस्त देखी अपने
काज़ी साहब ने कहा जी आली जहां
फिर शहंशाह ने किसी और के ना कोई सवाल किया ना कुछ बोले और कहा दरबार बर्खास्त किया जाता है, और वहां से चले गए।
क्यों की शहंशाह शाहजहां दाराशिकोह को अपना वलीअहद मुकर्रर करना चाहते थे और औरंगज़ेब की हिम्मत से तो शहंशाह के ऊपर एक पहाड़ सा टूट पड़ा हो
दरबारी भी सोचने लगे और समझ गए की शहंशाह ने कोई फैसला क्यो नही लिया
शहंशाह शाहजहां ने चारो शाहज़ादो का इम्तेहान लेने का फैसला इसी लिए किया था ताकि ये अंदाज़ा हो सके की किस शहज़ादे में कितनी ज़िहानत और जुर्रत है, और शहंशाह ये भी मालूम करना चाहते थे की शहज़ादो को उमूरे सल्तनत से किस हद तक दिलचस्वि है।
अब अगर हम बात बादशाह औरंगज़ेब आलमगीर की करें तो औरंगज़ेब के अंदर बचपन से ही हिम्मत जुर्रत और बहादुरी थी जिसकी मिसाल सल्तनत के तमाम लोगो को महज़ 14 साल की उम्र में दिखाई दे गई थी।
तो ये था शहंशाह शाहजहां और हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर के बीच का एक तारीखी वाकिया।
अलतमश रज़ा खान
उत्तर प्रदेश, बरेली शरीफ मोहल्ला शाहबाद