‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ’ कांग्रेस पार्टी का चुनावी नारा 1971 का है. इंदिरा गांधी की जीत में इस नारे के योगदान को सभी राजनीतिक विश्लेषकों ने एक सुर में स्वीकार भी किया.
Newindianews/UP आँकड़ों की माने तो उस दौर में भारत में ग़रीबी दर 57 फ़ीसदी थी. आगे चल कर इंदिरा गांधी ने इसी नारे को अपने 20 सूत्रीय कार्यक्रम का हिस्सा भी बनाया. लेकिन भारत से ‘ग़रीबी हटाओ’ के नारे के पचास साल बाद 2021 तक ग़रीबी नहीं हटी है.
हाँ, ग़रीबी को नापने के पैमाने और तरीकों में समय समय पर बदलाव ज़रूर हुआ है. नीति आयोग की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश, भारत का तीसरा सबसे ग़रीब राज्य है.
इस रिपोर्ट में पहले स्थान पर बिहार और दूसरे स्थान पर झारखंड है. यानी भारत में ग़रीबी में उत्तर प्रदेश का मुक़ाबला बिहार और झारखंड जैसे राज्य से है. उत्तर प्रदेश में अगले तीन महीने में चुनाव होने वाले हैं.
नेशनल मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स (MPI). ये रिपोर्ट नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की 2015-16 की रिपोर्ट पर आधारित है.
यानी ये रिपोर्ट उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के कार्यकाल के बारे में नहीं बल्कि अखिलेश सरकार के कार्यकाल की गवाही दे रही हैं. रिपोर्ट में पाया गया है कि उत्तर प्रदेश में 37.78 फ़ीसदी आबादी ग़रीब है.
उत्तर प्रदेश के 71 ज़िलों में 64 ज़िले ऐसे हैं जहाँ का ‘मल्टीडाइमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स’ राष्ट्रीय औसत से ज़्यादा है.
रिपोर्ट के मुताबिक़ खाना बनाने के लिए ईंधन की बात हो या फिर सैनिटेशन की सुविधा या फिर रहने के लिए घर – तीनों इंडिकेटर्स पर उत्तर प्रदेश की स्थिति दूसरे राज्यों के मुकाबले ज़्यादा ख़राब है. उत्तर प्रदेश की 60 फ़ीसदी से ज़्यादा आबादी को ये तीनों बेसिक बेसिक सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं.
अकसर लोग समझते हैं कि ग़रीब होने का मतलब है लोगों के पास पैसा नहीं है. लेकिन नीति आयोग की ‘ग़रीबी सूचकांक’ पर ताज़ा रिपोर्ट प्रति व्यक्ति आय या फिर ग़रीबी रेखा से कितने लोग ऊपर हैं या कितने नीचे – इस आधार पर नहीं है.
भारत सरकार के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणब सेन कहते हैं, “ग़रीबी का सही आकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि अच्छा जीवन जीने के लिए आपके पास सारी सुविधाएँ है या नहीं. कुछ चीज़े ऐसी होती हैं जो आप पैसे से ख़रीद सकते हैं. कुछ चीज़ें है जो पैसे से नहीं ख़रीद सकते हैं.