Newindianews/CG जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए नृशंस आतंकवादी हमले के विरोध में छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में मुस्लिम समाज द्वारा जोरदार प्रदर्शन किया गया। रायपुर शहर में सीरतुन्नबी कमेटी के सदर सोहैल सेठी के नेतृत्व में मुस्लिम समाज के लोगों ने आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर आवाज बुलंद की और राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा। इस रैली का उद्देश्य आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करना और देश के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाना था।
गौरतलब है कि शुक्रवार की नमाज के बाद राजधानी समेत गरियाबंद, भिलाई, दुर्ग और अन्य जिलों में मुस्लिम समाज के हजारों लोगों ने एकजुट होकर अमानवीय हमले की कड़ी निंदा की। रायपुर में रैली की शुरुआत औलिया चौक, मोतीबाग से हुई, जो कि कलेक्ट्रेट परिसर तक पहुंची। इस रैली में बच्चे, बुज़ुर्ग और युवा—हर वर्ग के लोग शामिल हुए, जिन्होंने तपती धूप में भी डटे रहकर आतंकवाद के खिलाफ आक्रोश जताया।
रैली में शामिल लोगों ने हाथों में तख्तियां लेकर और काली पट्टियाँ बाँधकर विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने ‘आतंकवाद मुर्दाबाद’, ‘पाकिस्तान होश में आओ’, ‘हम अमन पसंद हैं, लेकिन आतंक के खिलाफ सख्त हैं’ जैसे नारों से माहौल को गूंजायमान कर दिया। रैली में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का पुतला दहन किया गया, जो इस बात का प्रतीक था कि अब देश का नागरिक समाज आतंक के खिलाफ सहनशील नहीं रहना चाहता।
सीरतुन्नबी कमेटी के सदर सोहैल सेठी ने कहा कि मुस्लिम समाज शांति और सौहार्द में विश्वास रखता है, लेकिन जब देश की सुरक्षा और नागरिकों की जान की बात हो, तो हम पीछे नहीं हट सकते। उन्होंने यह भी बताया कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा गया है, जिसमें आतंकवादी घटनाओं के खिलाफ त्वरित और कठोर कार्यवाही की मांग की गई है।
सोहैल सेठी ने कहा कि मुस्लिम समाज आतंक के खिलाफ है और देश के साथ खड़ा है। उन्होंने कहा कि ऐसे कायराना हमलों से देश की एकता और अखंडता को कोई खतरा नहीं, बल्कि ऐसी घटनाएं लोगों को और ज्यादा मजबूती से जोड़ती हैं।
रैली का संचालन पूरी तरह शांतिपूर्ण ढंग से किया गया। पुलिस प्रशासन ने भी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पूरी तैयारी की थी, जिससे किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति उत्पन्न नहीं हुई।
इस जनआक्रोश रैली ने यह साबित कर दिया कि भारत का मुस्लिम समाज आतंकवाद और कट्टरता के खिलाफ है। यह रैली एक प्रकार से उन तत्वों को करारा जवाब थी, जो समाज में भ्रम और नफरत फैलाना चाहते हैं। यह एकजुटता, शांति और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक बनकर उभरी, जिसने पूरे देश में यह संदेश दिया कि आतंक का कोई मजहब नहीं होता और इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं।
इस जुलूस में क़ाज़ी उल्क़ज़ात मौलाना मोहम्मद अली फारूक़ी, पूर्व महापौर एजाज़ ढेबर, वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सलीम राज, हज कमेटी के अध्यक्ष असलम ख़ान, जामा मस्जिद के मुतवल्ली अब्दुल फ़हीम, शेख निज़ामुद्दीन, हाजी बदरुद्दीन खोबर, नई मस्जिद रिज़वी, पार्षद शेख मुशीर, डॉ. मुनाजिद अली फारूक़ी, अशफाक कुर्शी मुतवल्ली, इस्माईल बाबू मुतवल्ली, राहत रऊफी, शेख अमीनुद्दीन, कामरान अंसारी, अमजद, अनीस रज़ा मुतवल्ली, हाजी परवेज़ अख्तर, रफीक नियाज़ी, याकूब गनी, अमीन शेख, एजाज़ ख़ान, इरशाद सेठी, इस्लामुद्दीन, अशरफ अहमद, फिरोज़ ख़ान, मो. इसरार, नूरउद्दीन, शोबी मलिक, क़य्यूम अहमद, रियाज़ कुरैशी, करीम सेठी व अन्य मस्जिदों के मुतवल्ली व समाज के गणमान्य नागरिक इस विरोध में उपस्थित थे।