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हसदेव में कोयला खनन के लिए 1,742 हेक्टेयर वनभूमि डायवर्जन की सिफारिश, पर्यावरण कार्यकर्ताओं और विपक्ष का विरोध शुरू

Newindianews/Delhi छत्तीसगढ़ वन विभाग ने सरगुजा जिले के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हसदेव अरण्य क्षेत्र में प्रस्तावित केंते एक्सटेंशन कोल ब्लॉक के लिए 1,742.60 हेक्टेयर वन भूमि को डायवर्ट करने की सिफारिश की है। यह सिफारिश राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RVUNL) के पक्ष में की गई है, जो अब केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की मंज़ूरी का इंतज़ार कर रही है।

यह जानकारी टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) और हिंदुस्तान टाइम्स (HT) की रिपोर्टों में सामने आई है।

TOI की रिपोर्ट के अनुसार, यह सिफारिश 26 जून 2025 को किए गए जमीनी निरीक्षण के बाद दी गई, और इसे 7 जुलाई को मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया। HT ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इस डायवर्जन के कारण 6 लाख से अधिक पेड़ों की कटाई हो सकती है।

विरोध में कांग्रेस और पर्यावरण कार्यकर्ता

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी सरकार द्वारा रोकी गई पर्यावरणीय स्वीकृति को अब कॉर्पोरेट हितों के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि

“’एक पेड़ माँ के नाम’ का नारा देने वाली सरकार अब हसदेव के जंगलों को कॉर्पोरेट के हवाले कर रही है।”

बघेल ने यह भी कहा कि यह इलाका चरनोई नदी के जलग्रहण क्षेत्र में आता है और इसकी जैव विविधता को बचाने की सिफारिश बायोडायवर्सिटी स्टडी रिपोर्ट में की गई थी।

HT के अनुसार, खनन परियोजना की जन सुनवाई के दौरान 1,623 लिखित आपत्तियां दर्ज की गई थीं, लेकिन पर्यावरण मूल्यांकन समिति (EAC) ने उन्हें दरकिनार करते हुए मंज़ूरी की सिफारिश कर दी।

पर्यावरण संगठनों का विरोध

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने इस निर्णय को पारिस्थितिक, कानूनी और लोकतांत्रिक मानदंडों का उल्लंघन बताया है। कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यह इलाका प्रस्तावित लेमरू हाथी रिज़र्व से महज़ 3 किमी दूर है और इससे मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं और बढ़ सकती हैं।

पर्यावरणविद् आलोक शुक्ला ने इसे न केवल वन्यजीव संस्थान की सिफारिशों के खिलाफ बताया, बल्कि छत्तीसगढ़ विधानसभा द्वारा सभी कोयला ब्लॉकों को रद्द करने के सर्वसम्मत प्रस्ताव की भी अवहेलना कहा।

पृष्ठभूमि: हसदेव अरण्य का संघर्ष

हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ का एक 1,500 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ घना जंगल है, जो कई आदिवासी समुदायों का घर है। यहाँ लगभग 5 अरब टन कोयले का भंडार अनुमानित है।

2010 में इसे “नो-गो ज़ोन” घोषित किया गया था, लेकिन यह निर्णय बाद में रद्द कर खनन की अनुमति दे दी गई। तब से कई चरणों में पेड़ों की कटाई और खनन कार्य शुरू हो चुके हैं।

पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार ने संसद में बताया था कि PEKB परियोजना के तहत 94,460 पेड़ काटे जा चुके हैं और 2,73,757 पेड़ों की कटाई प्रस्तावित है।

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