वक्फ बिल पर आदिल अहमद की प्रतिक्रिया : मुस्लिम समाज को नई जागरूकता की ओर संके
NewIndianews/CG हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा पारित वक्फ बिल को लेकर पूरे देश में मुस्लिम समुदाय के बीच चर्चा तेज हो गई है। छत्तीसगढ़ राजधानी रायपुर के पत्रकार आदिल अहमद ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए एक बेहद सटीक और आत्ममंथन करवा देने वाली बात कही। उन्होंने लिखा:
“एक तरीके से ठीक भी हुआ, क्योंकि इतने सालों से कोई मुसलमान का ध्यान भी नहीं था वक्फ की संपत्ति पर, अब आंखें खुल रही हैं पठानों की…”
आदिल के इस बयान में वर्तमान समय की सच्चाई छिपी हुई है। उनका मानना है कि वक्फ संपत्तियाँ, जो मुस्लिम समाज की भलाई और उत्थान के लिए बनाई गई थीं, वर्षों से उपेक्षा और राजनीतिक स्वार्थ का शिकार बनती रही हैं। उन्होंने यह भी इंगित किया कि जब से वक्फ बोर्ड की स्थापना हुई है, तब से इसे कई मुस्लिम नेताओं को सौंपा गया ताकि वे मुस्लिम समुदाय को शिक्षा और आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ा सकें।
लेकिन वास्तविकता यह रही कि वक्फ संपत्तियों का उचित उपयोग नहीं हो पाया। मुस्लिम स्कॉलर और विद्वान लगातार मंचों से अपील करते रहे कि वक्फ की संपत्तियों का उपयोग गरीब मुसलमानों की मदद, शिक्षा और रोजगार के लिए किया जाए। परंतु इन बातों पर अमल नहीं किया गया।
आदिल ने यह भी स्पष्ट किया कि:
“हम यहाँ शिया-सुन्नी-अहलेहदीस की लड़ाई में उलझे रहे। हम उस कुरान की आयत को भी झुठलाने लगे जिसमें अल्लाह ने साफ-साफ कहा है कि ‘तुम सब एक रस्सी को थामे रहो और आपस में फिरकों में न बंटो’।”
यह बात मुस्लिम समाज के भीतर फैली फूट और मतभेदों पर एक कड़ा प्रहार है। उनका तात्पर्य यह है कि जब तक मुसलमान आपस में बंटे रहेंगे, तब तक न तो वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग हो पाएगा, न ही समाज में कोई ठोस सुधार आ सकेगा।
केंद्र सरकार के वक्फ से संबंधित निर्णय पर उन्होंने सकारात्मक नजरिया अपनाते हुए कहा कि:
“ईश्वर जो चाहता है वही होता है।”
इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि आदिल अहमद इस निर्णय को एक चेतावनी या अलार्म की तरह देख रहे हैं—एक ऐसा मौका, जिससे मुस्लिम समुदाय को जागना चाहिए और आत्मचिंतन करना चाहिए कि आखिर वर्षों से उनके पास जो संसाधन थे, उनका उपयोग क्यों नहीं किया गया।
उन्होंने यह भी संकेत दिया कि शायद यह कदम इस दिशा में एक झटका है, जो समुदाय को झकझोर कर सुधार की ओर ले जा सकता है। जब खुद समाज अपने संसाधनों और संस्थाओं का प्रबंधन करने में विफल हो, तो यह सरकारों के लिए रास्ता खोल देता है कि वे हस्तक्षेप करें।
आदिल अहमद का यह बयान सिर्फ एक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक सोच और आत्मचिंतन का प्रतीक है। उन्होंने मुस्लिम समाज को आईना दिखाने की कोशिश की है, ताकि अब भी समय रहते समाज एकजुट होकर वक्फ जैसी संस्थाओं का सही उपयोग करना सीखे। अगर मुसलमानों ने अब भी इन मुद्दों पर गंभीरता नहीं दिखाई, तो आने वाले समय में हालात और भी कठिन हो सकते हैं।
इस प्रकार, वक्फ बिल पर आदिल अहमद की टिप्पणी समाज के लिए एक चेतावनी और सुधार की पुकार है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।